खनिजों-की-उत्पत्ति-प्रक्रिया

विश्व के खनिज संसाधन – खनिजों की उत्पत्ति प्रक्रिया

Geography

परिचय (Introduction)

खनिज संसाधन मानव सभ्यता एवं संस्कृति के आधार स्तंभ हैं । सभ्यता एवं संस्कृति के प्रारंभिक चरण से लेकर वर्त्तमान तकनीकी एवं वैज्ञानिक युग तक का प्रयोग मानव ने किसी न किसी रुप में किया है । ‘सुई’ जैसे तुच्छ उपष्कर से लेकर भारी मशीन एवं अन्य विभिन्न उपयोगी उपकरणों के निर्माण में खनिज संसाधन अतिविशिष्ट स्थान रखता है । आज का युग ‘औद्योगिक युग’ है, जहाँ खनिज संसाधन की उपयोगिता इतनी अधिक है कि इसके आभाव में कोई भी राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय-स्तर पर अपने को जीवित नहीं रख सकता । अस्तु, खनिज संसाधन को आधुनिक स्वाचालित युग की रीढ़ (Back Bone) कही जा सकती है ।

इस संसार में विभिन्न खनिजों की आपूर्ति खानों (Mines) द्वारा होती है । जिस कारण इन खानों का महत्व बढ़ जाता है । ‘लोहा’, जो विनिर्माण उद्योग की जड़ हैं, मशीन, यातायात के साधन एवं विनिर्माण कार्य इत्यादि हेतु आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराता है, खानों की ही एक उपज है । किन्तु यह नाशवान है, जिसे पुनर्जीवित करना असंभव सा है । इसे न तो फसलों के रूप उपजाया जा सकता है और न ही इसका नकली-रूप तैयार किया जा सकता है । खनिजों का निर्माण एक जटिल भूगार्भिक प्रक्रिया द्वारा लाखों करोड़ो वर्षो में होता है । इस वजह से खनिजों जैसी प्राकृतिक सम्पदा का महत्त्व मानव सभ्यता-संस्कृति के लिए अत्यधिक है ।

खनिज संसाधनों का वितरण वनस्पति एवं पशुओं से भिन्न हैं क्योंकि इस पर जलवायु के साथ-साथ पृथ्वीं के आंतरिक संरचना का भी नियंत्रण होता है। खनिजों का वितरण कमोबेश सम्पूर्ण विश्व में पाया जाता है चाहे क्यों न भिन्न-भिन्न जलवायु हो । धात्विक खनिजें यांत्रिक प्रक्रिया द्वारा निर्मित होती है तथा उबड़-खाबड़ धरातलों पर पायी जाती है । जबकि अधात्विक खनिजों (कोयला, पेट्रोलियम) का निर्माण रसायनिक विच्छेदन की प्रक्रिया द्वारा अत्यंत निम्नवर्ती धरातलों में होती है ।

खनिज संसाधनों के वाणिज्यिक मूल्य का निर्धारण धरातल पर सर्वाधिक है किन्तु सोना, चाँदी जैसे पदार्थ अल्प मात्रा में उपलब्ध होने के कारण ही पदार्थ मूल्यवान है । आज खनिजों का उपयोग तापीय उर्जा से लेकर सामरिक हथियारों के निर्माण तक में हो रहा है। यही वजह है कि खनिज संसाधन समूचे विश्व में संघर्ष का केन्द्र बिन्दु बना हुआ है|

परिभाषा (Definition)

सामान्य व्यवहार में खनिजों का प्रयोग भिन्न-भिन्न अर्थों में होता रहा है। व्यक्तियों का एक समूह इस धारणा में विश्वास करते हैं कि सभी प्रकार के अजैव या अकार्बनिक (Inorganic) पदार्थ खनिज है’। वही लौह अयस्कों (Iron Ores) को खनिज नाम से संबोधित करते हैं। ठीक उसी प्रकार औषधि निर्माता विटामिनों (Vitamins) को खनिज की संज्ञा देते हैं । इसके विपरीत खनिज विज्ञान में अकार्बनिक प्रक्रम द्वारा निर्मित ठोस पदार्थ या यौगिक (Compound) को खनिज कहा जाता है ।

प्रस्तुत अध्ययन में खनिज से हमारा तात्पर्य खनिज – विज्ञान में दी गई परिभाषा के अनुरूप पदार्थों से है। इस परिभाषा के अनुसार, “प्रत्येक खनिज निश्चित अनुपात में तत्वों के नियत रासायनिक संयोजन (Chemical Composition) वाला प्राकृतिक अकार्बनिक पदार्थ होता है तथा उसमें एक विशिष्ट आंतरिक परमाणुविक संरचना (Atomic Structure) मिलती है ।”

सरल शब्दों में, “निश्चित रासायनिक संयोजन एवं विशिष्ट आंतरिक परमाणुविक संरचना वाले ठोस प्राकृतिक अकार्बनिक पदार्थ को खनिज कहते है।”

यथा, क्वार्टज एक प्राकृतिक अकार्बनिक पदार्थ है जिसका रासायनिक संयोजन (Sio) नियत है तथा जिसमें विशिष्ट आंतरिक संरचना होती है । अतः क्वार्ट्ज को खनिज कहा गया । इन्हीं आधारों पर अभ्रक, फेल्सपार (Feldspar) गैलेना, ग्रेफाइट, हीरा, कैल्साइट जैसे लगभग 2000 पदार्थों को खनिज की संज्ञा दी गई ।

खनिज की उत्पत्ति प्रक्रिया (Process of origin of Minerals)

खनिज की उत्त्पत्ति के संदर्भ में पूर्व में ही चर्चा की गई है । इसकी उत्पत्ति एक जटिल-चक्रीय पद्धति द्वारा होता है । इन प्रक्रियाओं में विविधता होती है । अध्ययन में सुविधा के दृष्टिकोण से इनकी निर्माण प्रक्रियाओं को निम्नवत प्रस्तुत किया जा रहा है ।

(i) उष्ण जलीय विलोपन विधि : जल पृथ्वी के अंतवर्ती भाग में पटल-विरुपक शक्तियाँ मैग्मीय द्रवीभूत पदार्थों को बाह्य भागों में उत्क्षेपित करती है, जिससे उसके साथ उपलब्ध उष्ण द्रव एवं गैस भी संचारित हो जाते हैं । रास्ते में ही ये द्रव एवं गैसीय पदार्थ अपने गुणधर्मानुसार घुलकर अवशोषित एवं एकत्रित होकर निक्षेपित हो जाते हैं। निक्षेपण की यह उष्ण जलीय विलयन विधि कहलाती है ।

(ii) मैग्मीय वियोजन विधि : इस प्रक्रिया में द्रवीभूत शैल के अवशीतन काल में विभिन्न ताप पर गुण- धर्मानुसार विविध खनिज रबाकृत (Crystallize) होते जाते है । निक्षेप के क्रम में ये विविध धातुएँ अलग-अलग होती जाती है । यहाँ यह देखा जाता है कि सबसे कम घुलनशील पदार्थ सबसे पहले रवाकृत (Crystallize) होती है । मैग्नेटाइट लौह खनिज ऐसी धातुओं में से होती है जो सबसे बाद में रबाकृत होती है । जब द्रवित शैलों में ऐसी धातुओं के यौगिक वर्त्तमान रहते हैं तो अवस्थित द्रवों में ऐसी धातुओं की प्रचुरता होती है और इस प्रकार ठंडे होने के पश्चात उक्त चट्टाने मोटी हो एकत्रित हो जाती है। कभी-कभी ये पार्श्ववर्ती चट्टानों की दोषियों (Fault Zone) में शिराओं (Veins) के रूप में जमा हो जाते हैं ।

(iii) सम्पर्क खण्डीय या कटिबंधीय निक्षेप : जब धातु मैग्मा के वाष्पशील द्रव या गैस (Volatile Constituents) पार्श्ववर्ती चट्टानों में चले जाते हैं तो उनका सम्पर्क चाटनों के विभिन्न खनिजों से हो जाता है । सम्पर्क जनित अन्योन्य प्रतिक्रिया शीलता (Mutual Interaction) के कारण इन द्रव या गैसों का अवपतन (Precipitate) हो जाता है और सम्बद्ध खनिज द्रवीभूत शैलों के अन्तर्भेदी चटाट्नों एवं पाश्वर्ती चट्टानों के सम्पर्क खण्डों या कटिबन्धों में जमा हो जाते हैं। ये निक्षेप सर्वथा पाश्र्ववर्ती चटाट्नों में ही मिलते हैं। कभी-कभी तो इनकी बहुलता इतनी हो जाती है कि उक्त चटाट्नों में निहित पहले के खनिज का पता नहीं चलता है। ऐसे निक्षेप विशेषकर आग्नेय चटाट्न के समीपरुप परिवर्तित चटाट्नों में होते हैं ।

(iv) अवसादन विधि : इस विधि में दो प्रक्रियाएँ होती हैं रसायनिक एवं भौतिक अवसादन । प्रथम प्रक्रिया द्वारा खनिज द्रव्य, जल आदि के द्वारा विलयन या घोलावस्था में एक स्थान पर ले जाये जाते हैं, कालान्तर में 16in अवपतन के बाद इनका अवसादन हो जाता है ।

द्वितीयक प्रक्रिया में खनिज के कण या पिण्ड हवा या हिम नदी के प्रवाह में खिसकते जाते हैं और विभिन्न स्थानों पर इनका अवसादन हो जाता है । इन दोनों प्रक्रियाओं का सम्बन्ध केवल परतदार चटाट्नों में होता है । ज्ञातव्य हो कि कोयला, पेट्रोलियम या अन्य उर्जा श्रोत की उत्पति इसी प्रकार होती है ।

(v) अवशिष्ट अपक्षरण विधि : वर्षा जल के धरातल पर गिरते ही वनस्पति अम्ल के सम्पर्क में आ जाते हैं । जैसे-जैसे अम्लयुक्त जल पृथ्वी की निचली चटटनों में प्रविष्ट होता है उसके साथ उक्त चाटन के विभिन्न तत्व अपने गुण-धर्मानुसार घुलकर प्रवाहित होते चले जाते है । उसके बाद धरातल की ऊपरी पटल में केवल मल अघुलनशील धातुएँ ही अवशिष्ट रह जाती है, जो अपेक्षाकृत अधिक शुद्ध रहती हैं जिसके फलस्वरूप उनकी धातु सम्पन्नता अधिक होती है । बॉक्साइट का निर्माण इसी प्रक्रिया द्वारा होता है। उधर जल के द्वारा घुलकर नीचे प्रवाहित होने वाले तत्व का भी अन्यत्र कहीं निक्षेप हो जाता है । ये तत्त्व या खनिज नदियों द्वारा समुद्र में पहुँचाकर अवसादित कर दिया जाता है । इस विधि को द्वितीयक सम्पतीकरण प्रक्रिया (Secondary 15 + Enrichment Process) भी कहते है । इसके अलावे भी कुछ निम्नलिखित प्रक्रियाएँ हैं जिनमें खनिज विशेष की उत्पति तथा निक्षेप होता है :

  • (i) ऊहार्वावतन क्रिया
  • (ii) आसवन क्रिया
  • (iii) शाकाणुओं द्वारा निःसादन
  • (iv) वाष्पीकरण तथा अधिसुदृप्ती करण क्रिया
  • (v) कायांतरण प्रक्रिया इत्यादि ।

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