भोजन के आवश्यक तत्व जिससे शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है, उसे ‘पोषक तत्व‘ कहते हैं। शरीर की वृद्धि के लिए आवश्यक तत्व भोजन से ही मिलते हैं। भोजन में पोषक तत्वों के रूप में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन, खनिज तत्व होते हैं ।
कैलोरी
भोजन से प्राप्त उर्जा के माप की इकाई है। मनुष्य के भोजन में आवश्यक व अपेक्षित तत्वों का अभाव ‘कुपोषण’ कहलाता है । संतुलित भोजन न मिल पाने के कारण व्यक्ति दुर्बल हो जाता है तथा उसमें रोगों से मुकाबला करने की शक्ति क्षीण हो जाती है । संतुलित भोजन से तात्पर्य भोजन की अधिक मात्रा से नहीं है । वरन् मनुष्य के शरीर, आयु व कार्य के अनुसार अपेक्षित पौष्टिक तत्वों की प्राप्ति से है ।
मनुष्य के भोजन में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज व विटामिन की पर्याप्त संतुलित मात्रा होनी चाहिए, जिससे कैलोरी (उर्जा) प्राप्त होती है । विभिन्न भौगोलिक दशाओं में व्यक्ति को भिन्न-भिन्न कैलोरी की आवश्यकता होती है । उदाहरणार्थ-उष्ण कटिबंधीय देशों के लोगों को मध्य एवं उच्च अक्षांशीय देश के लोगों की अपेक्षा कम कैलोरी की आवश्यकता होती है । इसके साथ ही मनुष्य की व्यक्तिगत विशेषताओं के आधार पर भी कैलोरी की आवश्यक मात्रा निर्धारित होती है ।
‘फूड एण्ड न्यूट्रीशन बोर्ड ऑफ दी नेशनल रिसर्च कौंसिल’ ने 4 से 6 वर्ष तक के बच्चों के लिए 1600 कैलोरी, 25 वर्ष तक के लिए 3200 कैलोरी, 45 वर्ष की आयु वाले व्यक्तियों के लिए 2900 कैलोरी निर्धारित की है ।
विश्व के अधिकांश क्षेत्रों में भोजन की मात्रा तो पर्याप्त मिलती है परन्तु उसकी किस्म निम्न स्तर की होती है । विश्व के अधिकांश देशों में भोजन के न्यून मात्रा के साथ ही उसमें पोषक तत्वों की कमी पाई जाती है । वस्तुतः इन देशों की आर्थिक स्थिति दयनीय है । फलतः समुचित पोषक आहार ग्रहण करना उसके निवासियों के लिए असम्भव है ।
विश्व में सबसे कम कैलोरी प्राप्त करने वाले देशों में फिलिपींस (1800) जार्डन (1830), इक्वेडोर (1970) भारतवर्ष तथा श्रीलंका (2000) मुख्य है । विकसित देशों के लोगों के भोजन में कैलोरी एवं प्रोटीन की मात्रा उच्च पाई जाती है । मध्य अमेरिका, ब्राजील, अर्जेन्टाइना, दक्षिण अफ्रीका संघ, मिस्र, अल्जीरिया, कीनिया में कैलोरी एवं प्रोटीन की मात्रा एवं प्रोटीन की निम्न मात्रा (क्रमश: 2500 से कम तथा 60 ग्राम से कम प्रति व्यक्ति) में पाई जाती है ।
कुपोषण की पहचान (Identity of Mal-Nutrition)
निम्नलिखित विशेषताओं के आधार पर कुपोषित लोगों की पहचान की जा सकती है
- चेहरे का उदास व सुस्त होना ।
- शरीर का दुबला–पतला व निस्तेज होना ।
- आयु के अनुसार ऊँचाई व भार में कमी का होना
- रोगों के अभिलक्षण दृष्टिगत होना ।
- त्वचा का ढीला व खुरदरा हो जाना ।
- माँसपेशियों का ढीला एवं बालों का रूखा हो जाना ।
- सामान्य कार्य में थकावट अनुभव करना ।
- भूख न लगना ।
कुपोषण एक प्रकार की बीमारी की स्थिति है । प्रोटीन, विटामिन या कैलोरी के अभाव में यह स्थिति उत्पन्न होती है । कुपोषण के कारण अनेक रोगों की उत्पति हो जाती है । इससे स्वास्थय पर बुरा असर पड़ता है ।
कुपोषण के कारण (Causes of Mal – Nutrition)
1.अस्वास्थ्यप्रद वातावरण : शुद्ध वायु स्वच्छ जल एवं स्वस्थ पर्यावरण के अभाव में बालक का पोषण उत्तम ढंग से नहीं हो पाता है । विद्यालयी वातावरण के स्वस्थ न होने से भी बालक का स्वास्थ्य कुप्रभावित होता 1/11
2. अपर्याप्त भोजन : बालकों तथा अन्य लोगों के कुपोषण का प्रमुख कारण पर्याप्त व पौष्टिक आहार का आभाव है। अधिकांश लोग निर्धनता एवं अज्ञानता के कारण अपेक्षित मात्रा में सन्तुलित भोजन प्राप्त नहीं कर पाते, फलस्वरुप वे अस्वस्थ होकर रूग्ण हो जाते है ।
3. भोजन में आवश्यक तत्वों का अभाव : मनुष्य के भोजन में गरीबी एवं अज्ञानता के कारण आवश्यक तत्वों का अभाव पाया जाता है । सन्तुलित आहार न मिलने से बालक युवा व प्रौढ़ सभी अनेक सभी अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं|
4. नियमित रूप से भोजन न करना : निश्चित समय पर नियमित रुप से भोजन करना स्वरुप के लिए अति आवश्यक है, जिस पर अधिकांश लोगों का ध्यान नहीं रहता । कार्य की व्यस्तता, लापरवाही के कारण भोजन करने में अनियमितता आ जाती है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति कमजोरी तथा रोग से त्रस्त हो जाता है |
5. पाचन क्रिया में विकार : नियमित रूप से सन्तुलित भोजन ग्रहण न करने से पाचन क्रिया में व्यवधान आ जाता है । गरिस्ट भोजन करने से भोजन की सुपाच्यता में अवरोध आ जाता है । इसके साथ ही अधिक कार्य भार, खेल–कूद की कमी, नींद आदि न आने के कारण भी भोजन की पाचन क्रिया प्रभावित होती है, जिसके कारण स्वास्थय ठीक नहीं रहता ।
पोषण – कुपोषण स्थिति समीक्षा (Situation Review of Nutrition – Mal Nutrition)
भूमण्डलीय भूख का प्राप्त अनुमान लगाने के लिए चार सूचकों का प्रयोग किया जाता है ।
- (i) भूखमरी
- (ii) अल्प पोषण (अपर्याप्त भोजन)
- (iii) सूक्ष्म पोषक तत्वों का अभाव
- (iv) पोषण ह्रास करने वाले रोग एवं परजीवी
सम्पूर्ण विश्व में भूखे लोगों की एक ही विशेषता है कि वे गरीब हैं। भूमिहीन तथा बेरोजगारी के पास भोजन प्राप्त करने के लिए न पैसा है न कोई साधन । विश्व में पोषण एवं कुपोषण की स्थिति कितनी चिन्ताजनक है, इसे निम्नलिखित तथ्यों से जाना जा सकता है ।
वर्तमान में विश्व की जनसंख्या 6 अरब से अधिक है ।
- विगत 50 वर्षों की अवधि में जनसंख्या में 240% से अधिक की वृद्धि हो गई है ।
- 4.विश्व विकास रिर्पोट -2002 के अनुसार सन 2050 तक विश्व की जनसंख्या 9 अरब से अधिक हो जाएगी।
- विश्व की 20% जनसंख्या की प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति आय एक डॉलर से भी कम है |
- लगभग 1.1 अरब व्यक्तियों को स्वच्छ पेयजल तक उपलब्ध नहीं है, दूषित जल तथा जल की अपर्याप्त आपूर्ति विकासशील देशों में 10% बीमारियों के लिए उत्तरदायी है ।
- विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में शिशु मृत्यु दर 10 गुना अधिक है।
- आज विकासशील दुनिया के 113 बच्चे प्रोटीन उर्जा कुपोषण से पीड़ित है ।
- अनुमानत: 2,50,000 बच्चे दृष्टिहीन हो जाते हैं, क्योंकि उनमें विटामिन ‘A’ की कमी होती है
- कम से कम 5 करोड़ बच्चों का विकास अवरुद्ध हो जाता है, क्योंकि उनमें आयोडीन की कमी होती है।
- विकासशील दुनिया में आधी से अधिक गर्भवती महिलाओं में आयरन की कमी होती है, जिससे एनीमिया रोग हो जाता है ।
- विश्व के 5 वर्ष से कम आयु के अल्प भार वाले बालकों में 50% से अधिक दक्षिण एशिया में है । 12. विश्व के 200 करोड़ से अधिक लोगों को प्रतिदिन ऐसा भोजन प्राप्त होता है, जिसमें मानव सामान्य विकास, समय पूर्व मृत्यु को रोकने तथा अंधापन और मानसिक कमजोरी जैसी अपगंताओं को रोकने लायक आवश्यक खनिज लवण विटामिन आदि नहीं होते ।
- W.H.O. की सन्तुलता की स्थिति को देखा जाए तो विकासशील देशों की 35% जनसंख्या भी आवश्यक औसत कैलोरी पोषक तत्वों को नहीं प्राप्त कर रही है ।
- विश्व बैंक के 1993 रिर्पोट के अनुसार विश्व के 110 करोड़ व्यक्ति अभूतपूर्व तंगी, गरीबी एवं भूखमरी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं, जिसकी आय प्रति वर्ष 360 डॉलर से भी कम है, जिससे यहाँ भूख, कुपोषण की समस्या स्पष्ट होती है ।
खाद्य एवं कुपोषण समस्या समाधान हेतु उपाय (Solution of Food & Nutrition Problems)
इस समस्या के समाधान की दिशा में प्रभावशाली कदम उठाये गये हैं, जिसके लिए निम्न प्रयास आवश्यक है :
- जनसंख्या नियन्त्रण : विश्व जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। बढ़ती जनसंख्या खाद्य एवं कुपोषण की समस्या को दूर करने के हर प्रयास पर पानी फेर देती है। जनसंख्या नियन्त्रण से ही खाद्य एवं पोषण की समस्या हल हो सकती है, अन्यथा भविष्य में यह और भी विकराल रूप धारण कर लेगी ।
- कृषि विकास विश्व के सभी राष्ट्रों को हरसंभव कृषि विकास का प्रयास करना चाहिए। जैसे–नई क्षेत्रों में कृषि करने की जरुरत है। कृषि योग्य बंजर भूमि, अनुपयुक्त भूमि को कृषि योग्य बनाना होगा। जैसे–चीन में 17.4%, भारत में 54%, ब्राजील में 7% कृषि भूमि विस्तार की आवश्यकता है । इससे खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि हो सकती है । वे देश जो कृषि भूमि नहीं बढ़ा सकते, वे लम्बत विकास अर्थात प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्रति हेक्टेयर उत्पादन वृद्धि की दिशा में कार्य कर सकते हैं ।
- वितरण, परिवहन, व रख–रखाव में सुधार : वितरण–राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय वितरण दोनों में सुधार आवश्यकता है। राष्ट्रीय वितरण के अन्तर्गत–गरीब देश जन वितरण प्रणाली को विकसित व सुदढ़ करें ।
- अन्तर्राष्ट्रीय वितरण में सुधार के अंतर्गत–खाद्य पदार्थों के राजनीतिकरण पर रोक लगानी चाहिए । गरीब देशों को मानवीय पहलूओं के आधार पर विशेष छूट एवं लम्बी अवधि की ऋण सुविधा के साथ खाद्य पदार्थो का उपलब्ध कराना चाहिए
- परिवहन : रेलवे या अन्य परिवहन सुविधा द्वारा खाद्य पदार्थो को समय पर व पूर्ण सुरक्षा के साथ गन्तव्य स्थान पर पहुँचा देना चाहिए जिससे खाद्य पदार्थों की बरबादी न हो ।
- रख–रखाव में सुधार : खाद्यान्नों को सुरक्षित रखने के लिए अच्छे प्रबन्ध की आवश्यकता होती है ।‘ इसके लिए बड़े–बड़े गोदाम, जिसमें पर्याप्त विद्युत सुविधा हो तथा शीत ग्रह भंडार की भी सुविधा रहनी चाहिए । इन सभी कार्यो से फसल खाद्य–पदार्थो की बरबादी पर रोक लग सकती है
- खाद्य पदार्थो का परिष्करण : विश्व के विकासशील देशों में खाद्य परिष्करण करने की आवश्यकता है । भारत में खाद्य पदार्थो का परिष्करण नहीं के बराबर होता है, जबकि विकसित राष्ट्रों में 70% खाद्य पदार्थों का परिष्करण किया जाता है। इससे शीघ्र विनिष्ट होने वाले फल व सब्जी की उपयोगिता को बढ़ाया जा सकता है । मौसमी फल सब्जी को वार्षिक बनाया जा सकता है ।
- अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता : यूनीसेफ, विश्व स्वास्थय संगठन, रेड क्रास सोसाइटी, एफ० ए० ओ०, जैसी संस्थाएँ आपसी तालमेल स्थापित कर खाद्य पदार्थों की उपलब्धता में संतोषजनक वृद्वि ला सकती है । इस समस्या के समाधान हेतु W.H.O. एवं F.A.O. संस्थाओं का योगदान सराहनीय है । 1992 में W.H.O. एवं F.A.O. ने मिलकर खाद्य व पोषण की समस्या हेतु रोम में अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया था । इस सम्मेलन में अकाल, पोषण की कमी, ओयोडीन तथा विटामिनों की कमी को दशक के अन्त तक समाप्त करने के लिए कार्यक्रमों का प्रारुप भी तैयार किया गया था ।
- आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करना : खाद्य व पोषण की समस्या समाधान हेतु आर्थिक पिछड़ेपन दूर करने की जरुरत है । आर्थिक मजबूती होने से ही क्रय क्षमता में भी सुधार होगा औ इससे खाद्य पदार्थो के खरीदनें व उपयोग की क्षमता में वृद्धि होगी । इन सभी से खाद्य पदार्थों की कमी व कुपोषण की समस्या का समाधान हो सकता है ।
- स्वास्थय सम्बन्धी जागरुकता : विश्व के खाद्य व कुपोषण समस्या ग्रसित देशों में स्वास्थय सम्बन्धी जागरुकता आवश्यक है । इससे मनुष्यों में खाद्य पदार्थो के प्रति सजगता आईगी । मनुष्य पोषक तत्वों को ही ग्रहण करेगा ।
- परस्पर सहयोग भावना : विश्व के खाद्य व कुपोषण ग्रसित विकासशील देशों को इस समस्या समाधान हेतु परस्पर मैत्री भाव से रहना चाहिए । आपस में आयात–निर्यात कर खाद्य समस्या को हल कर लेना चाहिए । इस दिशा में सार्क व एशियान के कार्य सराहनीय है ।
Conclusion
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट होता हैं कि विश्व के विकासशील देशों में खाद्य एवं कुपोषण की समस्या बनी हुई है। इस समस्या के अनेक कारण हैं। [ सामाजिक आर्थिक, राजनीतिक तथा पर्यावरणीय] इस समस्या के समाधान हेतु अनेक प्रयास किए गए हैं, परन्तु पूर्ण सफलता प्राप्त न हो सकी है। विश्व में खाद्य एवं पोषण की समस्या गम्भीर हो गई है। इस समस्या के समाधान के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की जरुरत है । आम लोगों की सहभागिता एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के बिना इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता ।
आज भी विकसित देशों की शोषणवादी रवैये एवं विकासशील देशों में आपसी एकता की कमी के कारण विश्व की करोड़ो जनता भूख से तड़पते हुए जीने को विवश है। रोम घोषण पत्र की पारित – “प्रत्येक को भूख से मुक्त रहने का मौलिक अधिकार” मात्र एक नारा या कहावत बन कर रह गया है
प्रत्येक व्यक्ति भूख की चिन्ता से मुक्त हो, स्वस्थ्य हो यह अपने देश, सम्पूर्ण मानव जाति विश्व के लिए आवश्यक है ।