महत्वपूर्ण कृषि प्रकार की प्रमुख विशेषताएँ एवं उनका वितरण

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कृषि तथा उसके प्रकार का details इस Post में किया जा रहा है कृषि एक प्राथमिक एवं अनिवार्य व्यवसाय है अतः प्रस्तुत Post में छात्र कृषि संबंधित अनेक पहलू से अवगत हो सकेंगे यथा :

  • (i) कृषि क्या है ?
  • (ii) कृषि प्रकार क्या है ?
  • (iii) कृषि प्रादेशीकरण के विभिन्न योजनाओं से अवगत हो सकेंगे
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2 महत्वपूर्ण कृषि प्रकार की प्रमुख विशेषताएँ एवं उनका वितरण (Important characteristics & distribution of commercial crops)

परिचय (Introduction)

कृषि शब्द अंग्रेजी शब्द ‘Agriculture’ का पर्यायवाची है, जो लेटिन भाषा के ‘Ager एवं ‘Culture’ से बना है ‘Ager’ का अर्थ खेत का टूकड़ा एवं ‘Culture’ से तात्पर्य खेती करना से है। अर्थात किसी जमीन के टुकड़े पर कार्य करना कृषि या Agricuture है जिसका उद्देश्य फसल प्राप्त करना है इस क्रिया में कलाकौशल एवं विज्ञान सहायक सिद्ध होता है

कृषि मानव का अति प्राचीन प्राथमिक व्यवसाय है भूगोलवेता फसलोत्पदान एवं पशुपालन दोनों को कृषि के अतंर्गत सम्मिलित करते हैं ब्रूस‘ (Brunfhres) जैसे विद्वान ने कृषि को पादपों एवं पशुओं का पालतूकरण (Domestication of Plant and Animal) कहा है इन्होंने कृषि को भूमि के शोषण पूर्ण व्यवसाय (Exploitative Occupation) की संज्ञा दी परन्तु वास्तव में कृषि पादप एवं पशुओं की विकास की एक विधि है पृथ्वी के धरातल पर कृषि सबसे अधिक व्यापक आर्थिक क्रिया है मानव ने स्थानिक तौर पर भिन्नभिन्न पर्यावरणीय दशाओं में कृषि व्यवस्था को अपनाया जो विभिन्न तकनीकी एवं विधियों के द्वारा फसलों की विविधता तथा पशुपालन में परिलक्षित होती है विभिन्न संदशों में भौतिक एवं जलवायुविक दशाओं तथा सांस्कृतिक अभिरुचियों के अनुसार भोजन उत्पादन करते हैं विशिष्ट कृषि को अब भी प्रभावित करती हैं तथापि एक समान जलवायु वाले क्षेत्रों में इनके विशिष्ट सांस्कृतिक लक्षणों के कारण भिन्न कृषि पद्धतियाँ प्रचलित हैं अतः फसलोत्पादन, पशुपालन एवं अन्य विशेषताओं के संरक्षण एवं प्रादेशिक विश्लेषण के लिए कृषीय भूदृश्यों का भौगोलिक वर्गीकरण आवश्यक हो जाता है|

महत्वपूर्ण कृषि प्रकार की प्रमुख विशेषताएँ एवं उनका वितरण (Important characteristics & distribution of commercial crops)

  1. चलवासी पशुचारण (Nomadic Herding)

यह कृषि पशु आधारित जीवन निर्वाहन कृषि है, इसका विकास मुख्यतः जनजातियों के मध्य हुआ है इसमें कृषकों का अस्थायी निवास होता है पशु ही उनकी सम्पति होती है वे पशुओं के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान में जाते हैं पशु उत्पाद का प्रयोग मुख्यतः निजी कार्य के लिए होता है, जैसे चमड़े का उपयोग बैग, जूतेचप्पल और अन्य घरेलू उपयोग के लिए होता है चमड़े की तुलना में दुग्ध एवं माँस का उपयोग अधिक होता है अपनी अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रारंभिक उत्पाद का थोड़ाबहुत व्यापार भी कर लेते हैं इस प्रकार के कृषि कार्य का विकास मुख्यतः मध्य एशियाई मरुस्थलीय प्रदेश में हुआ और अन्य संदेशों में फैलते गए

वितरण : इस प्रकार की कृषि उत्तर अफ्रीका में पं० अफ्रीकी सवाना प्रदेशों केफुलानी‘, पूर्वी अफ्रीका केमसाई’, इथोपिया एवं सूडान के न्यूवा ( छनई), बोत्सवाना केबान्टूतथा होटेन्टॉट, सऊदी अरब केबद्दूप्रमुख चलवासी पशुचारक वर्ग हैं।

मध्य एशिया में कैस्पियन सागर से लेकर मंगोलिया तथा उत्तरी चीन तकखिरगीज‘, ‘कज्जाकएवंकाल्मुकप्रमुख चलवासी पशुचारक थे साइबेरिया के टुण्ड्रा प्रदेशों मेंयाकृत‘ ‘समायोरतथा कोरियाक एवं स्वेन्डिनेविया केलैप्सभी चलवासी पशुचारक रहे हैं, पर अब इन्होंने स्थायी जीवन अपना लिया है।

B. स्थानांतरित कृषि (Shifting Agriculture)

स्थानांतरित कृषि व्यवस्था का प्रथम स्वरुप है, जिसकी उत्पत्ति 7000-8000 वर्ष पूर्व हुई थी यह वह प्रदेश हैं, जहाँ इनके कृषि भूमि स्थानांतरित होते रहते हैं। इसका स्थानांतरण तीन से चार वर्षों में होता है लेकिन कृषक गाँव को नहीं छोड़ते हैं वरन् दूसरी कृषि योग्य भूमि पर कृषि प्रारंभ कर देते हैं इस प्रकार की कृषि मुख्यतः जनजातियों द्वारा पहाड़ी, पर्वतीय या वनीय क्षेत्रों में की जाती हैं। इस कृषि की विशेषता यह है कि वनों को साफ कर भूमि की प्राप्ति की जाती है सामान्यतः एक प्रदेश का उपयोग तीनचार वर्षो तक किया जाता है। इसके बाद इसकी उर्वरता में कमी जाती है और कृषक उस भूमि को छोड़कर दूसरी भूमि पर कृषि हेतु चले जाते हैं यह एक जीवन निर्वाहन कृषि है

वितरण : अमेरिका, मध्य अफ्रीका, दक्षिण पूर्वी एशिया के उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में स्थानांतरित कृषि प्रचलित है इन प्रदेशों में कृषि को ‘Slash and Burn’ कृषि भी कहते हैं विश्व के विभिन्न भागों में इसे भिन्नभिन्न नामों से बुलाया जाता है उदाहरणस्वरूपमध्य अफ्रीकामसोले, मालागासीतेवी‘, मध्य अफ्रीका– ‘मिस्था‘, मेक्सिको– ‘बरबेकातथाकोमिले‘, वेनेज्वेलाकोनुको‘, ब्राजील– ‘केमाडातथारोका‘, मलेशिया-‘लदांग, सुमात्रा– ‘दिजूंना‘, ‘जावा– ‘हुआ‘, फिलीपीन्स– ‘कैंगिन‘, थाईलैंड – ‘तमराल‘, लाओस – ‘रे‘, मयाँमार– ‘टोंग्या‘, श्रीलंका– ‘चेनाइत्यादि

भारत में इसके अनेक नाम हैं, यथाउत्तर पूर्वी भारत– ‘झूम‘, उड़ीसा – ‘ पोडु‘, ‘कोमन‘ ‘बृंगा‘, पण्घाट कुमारी, दक्षिण पूर्वी राजस्थान – ‘ वालरा‘, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ – ‘ पेण्डा‘, ‘बंवर‘, यादाहिया

C. प्रारंभिक स्थायी कृषि (Rudimentary Sedentary Cultivation)

यह भी एक प्रकार का जीवन निर्वाहन कृषि है यह एक ऐसी कृषि है, जहाँ कृषक स्थायी रुप से रहकर (एक स्थान पर) परंपरागत ढंग से कृषि कार्य करते है प्रारंभिक स्थायी कृषक मुख्यत: खाद्यान्न फसलों का उत्पादन करते हैं आधुनिक कृषि सुविधाओं का उपयोग किये जाने के कारण प्रति हेक्टेयर उत्पादन न्यून है इस कृषि की दो कृमुख विशेषताएँ है

  • (i) स्थायी बंजर भूमि की बहुलता होती है
  • (ii) कृषि भूमि के उत्पादकता में क्रमिक ह्रास होता है

इसके कारण सघनता से कृषि करने के बावजूद वह जीवन निर्वाह कृषि के रुप में ही सीमित रह जाता है

वितरण : प्राचीन स्थानबद्व कृषि अधिकांशतः मध्य एवं दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका तथा दक्षिणी पूर्वी एशिया के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में सीमित है

D. सघन निर्वाहन कृषि (Intensive Subsistence Tillage)

यह सही अर्थों में मौनसूनी कृषि प्रदेश है इस कृषि की विशेषताएँ हैं :

  • (i)चावल प्रधान कृषि हैं
  • (ii) परंपरागत कृषि यंत्रों का बाहुल्यता से उपयोग
  • (iii) कृषि फार्म छोटे होते हैं और जनसंख्या दबाव के कारण वे लगातार छोटे होते जाते हैं
  • (iv) प्रति हेक्टेयर उत्पादकता कम होती है
  • (v) कृषि पर जनसंख्या का अत्यधिक दबाव रहता है, जिसके कारण गहन जीवन निर्वाहन कृषि हो जाती है

वितरण : इसका वितरण मानसून एशियाई देश चीन, जापान, भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, थाइलैण्ड, श्रीलंका, फिलीपीन्स, इन्डोनेशिया, मलेशिया, लाओस, कम्पूचिया तथा प्रशांत महासागरीय द्वीपों में पाया जाता है|

इस प्रकार की कृषि दो प्रकार के होते हैं

  • (1) चावल प्रधान गहन निर्वाहक कृषि,
  • (ii) चावल रहित सघन निर्वाहक कृषि ।

E. भूमध्य सागरीय कृषि (Mediterranean Agriculture )

भूमध्य सागरीय प्रदेश में विशिष्ट कृषि पद्धति का उपयोग किया जाता है यही कारण है कि यह एक महत्वपूर्ण कृषि प्रकार और प्रदेशों दोनों है भूमध्य सागारीय प्रदेश प्राचीन काल से शुष्क कृषि के लिए प्रसिद्ध रहा है इस प्रदेश की कृषि पद्धति की दो महत्वपूर्ण विशेषताएँ है:

(i) परम्परागत रुप से कृषक मृदा नमी पर निर्भर है ।

(ii) यहाँ प्राचीन काल से ही सिंचाई सुविधा का विकास हुआ है । यह नहर और भूमिगत सिंचाई- साधनों का क्षेत्र है । गर्म ऋतु की अधिक शुष्कता और ताप के कारण मृदा के वाष्पीकरण/वाष्पोत्सर्जन तीव्र होता है । जिससे सिंचिंत प्रदेश में लवणता बढ़ती है । इसे दूर करने के लिए शुष्क कृषि पद्धति पर विशेष रुप से सिंचाई और कृषि यंत्रों से गहन जुताई पर विशेष ध्यान दिया जाता है । यह एक ऐसा कृषि प्रदेश है जहाँ सिर्फ जाड़े में वर्षा होती है । लेकिन कृषि कार्य सालोंभर होता है । जाड़े की ऋतु में रसदार फल तथा गेहूँ एवं जौ की खेती प्रमुखता से की जाती है । ग्रीष्म ऋतु जैतून, अंगूर का उत्पादन होता है । जनसंख्या के अधिक दबाव के कारण सालोभर कृषि कार्य होता है । लेकिन वातावरण की अनुकूलता खाद्यान्न फसलों की तुलना में रसदार फलों के लिए अधिक अनुकूल है I इसलिए इसे प्रधानता दी गई है ।

इस कृषि प्रदेश में खाद्यान्न और रसदार के उत्पादन के अतिरिक्त पशुचरण भी एक प्रमुख कृषसाथ प्रदेश दुग्ध कृषि के लिए प्रसिद्ध है । पहाड़ी तथा पर्वतीय ढालों पर पशुचरण के कार्य होते हैं क्योंकि उनकी पारिस्थितियाँ विशेषताएँ पशुचरन के लिए अधिक अनुकूल है । पुनः इस प्रदेश में तम्बाकू, कपास, और मक्का भी उत्पन्न होत है । फसलों की विविधता से स्पष्ट होता है कि यह प्रदेश को ‘Orchard Land of the World’ एवं ‘शराब उत्पादक’ क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है । इसे अंगुर कृषि के कारण ‘Viti culture Land’ के नाम से भी जाना जाता है । अंगुर के अतिरिक्त वैसे फसलों की प्रधानता है जो मृदा नमी पर आधारित रह सके जैसे, संतरा, अंजीर, जैतून, विशेष महत्व रखतें हैं । इस कृषि पर पूँजी सघन श्रम और बाजार मूल्य के लचीलेपन का खास प्रभाव पड़ता है ।

वितरण : भूमध्य सागरीय कृषि दक्षिणी यूरोप, पं० एशिया, अफ्रीका के भूमध्यसागरीय तटीय क्षेत्रों, उ० अमेरिका में कैलिफोर्निया, द० अमेरिका में म० चिली तथा द० प० अफ्रीका एवं आस्ट्रेलिया में प्रचारित है

F. निर्वाहक शस्य एवं पशुपालन ( Subsistence Crop and Livestock Farming)

इस प्रकार के कृषि में कृषक अपने उपयोग के लिए फसल उगाते हैं, एवं पशु पालते हैं इन्हें नकद आय प्राप्त रहीं होती अतः वे आधुनिक मशीनरी तथा उत्तम नस्ल वाले पशु नहीं खरीद सकते इनका आपस स्थायी होता है इसके चारों ओर चारागाह होतें हैं

ये कृषक पशुओं के साथ लंबी दूरी तक पशुचारण का कार्य करते हैं और जाड़े की क्षेत्र में वापस चले आते हैं पारंपरिक उपकरणों का प्रयोग आर्थिक तंगी तथा कम लाभ देने वाले उनका आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय होता है विश्वयुद्ध के पश्चात रुस एवं यूरोप के समाजवादी देश खेतों का पुनर्गठन कर उन्हें बड़े सहकारी खेतों में परिवर्तित कर रहे है अतः यह कृषि एवं पशुपालन बड़ी तेजी से वाणिज्यिक रूप ले रही है नये नगरों का विकास हो रहा है, नय व्यापारिक उत्थान एवं डेयरी फार्म विकसित हो रहे हैं यहाँ के कृषक को ‘Trans Human’ कहा जाता है

वितरण : इस प्रकार की कृषि मैक्सिको, टर्की, ईरान, इराक आदि देशों में प्रचारित है

G. पशुपालन कृषि (Linestock Ranching)

पशुपालन का अभिप्राय विस्तृत क्षेत्र पर पशुओं के वाणिज्यिक चारण से है यह अर्द्धशुष्क तथा शुष्क प्रदेशों में अनुकूलित कृषि का एक प्रकार है इसका आरंभ दुग्ध एवं माँस उत्पादन के लिये किया गया था। यह अविकसित प्रदेशों में सीमित है जहाँ वनस्पति विरल तथा मिट्टियों कृषि के लिए अनुपयोगी हैं ऐसे प्रदेशों में बड़ेबड़े फार्मों पर प्रबंधन एवं स्थायी श्रम की व्यवस्था कर इस प्रकार कृषि की आती है जिससे प्राप्त दूध एवं माँस तथा इनसे बने सामग्री का विश्व स्तर पर व्यापार किया जाता है

वितरण :

  • (i) प० यू० एस० ए० तथा कनाडा एवं मैक्सिको
  • (ii) वेनेज्वेला केलैनोजप्रदेश
  • (iii) ब्राजील के सरताओं (Sertao)
  • (iv) उरुग्वे केपम्पा
  • (v) दक्षिण अफ्रीका केकारु
  • (vi) आस्ट्रेलिया के शुष्क आंतरिक भाग
  • (vii) न्यूजीलैंड का दक्षिणी द्वीप, इस कृषि का उपयुक्त क्षेत्र है

H. विस्तृत वाणिज्यिक अन्नोत्पदान (Extensive Commercial Grain Farming)

यह कृषि 19वीं शदी में औद्योगिक क्रांन्ति द्वारा लाई गए आर्थिक एवं प्राविधिक परिवर्तनों की ऊपज है यह कृषि यंत्रीकृत एवं विस्तृत होती है बड़े में फार्मों पर कृषि के आधुनिकतम पद्वति एवं यंत्रो का प्रयोग एवं उन्नत बीज खाद का प्रयोग कर अधिक से अधिक ऊपज ली जाती है यह क्षेत्र न्यून जनसंख्या वाला क्षेत्र हैं इन क्षेत्रों में गेहूँ की औसत उपज 1700 किलोग्राम / हेक्टेयर से भी अधिक होती है जबकि डेनमार्क, नीदरलैंड, तथा वेल्जियम में इससे तीन गुण उजप ली जाती है

वितरण : इस प्रकार के कृषि U.S.A., कनाडा, पूर्व सोवियत संघ, अर्जेनटाइना, में किये जाते हैं यूरोप के स्टेपी में यह सर्वाधिक विकसित है जहाँ चरनोजम प्रकार की मिट्टी पायी जाती है उ० अमेरिका का प्रेयरी, अर्जेनटाइना कापम्पादक्षिण अफ्रीका का वेल, आस्ट्रेलिया काडाउन्सतथा न्यूजीलैंड काकैण्टरबरीमैदान इसके प्रमुख क्षेत्र हैं

I. वाणिज्यिक पशुपालन एवं शस्योत्पादन (मिश्रित) कृषि ( Commercial Livestock and Crop Farming) (Mixed Farming)

मिश्रित कृषि प्रकारिकी क्षेत्र मूल रुप से विकसित देशों में पायी जाती है यह भी आधुनिक तकनीक पर आधारित है इसमें निर्वाहन कृषि जैसी विशेषता पायी जाती है इसके अन्तर्गत कृषि भूमि को मुख्यतः चार भागों में बाँटते हैं :

  • (i) चारे की कृषि तथा
  • (ii) अधिवास फल एवं सब्जी ।

बाँकी दो भागों में अधिक जनसंख्या दबाव होने पर खाद्यान्न फसल को प्राथमिकता दी जाती है जिसमे एक में भेड़ तथा दूसरे में मक्का की खेती की जाती है। यदि जनसंख्या दबाव कम होगा तो गन्ना जैसी औद्योगिक फसल होगा

इस प्रकार की फसलों की उत्पादकता का अनुकूल उपयोग का प्रयास किया जाता है यह आधुनिक कृषि यंत्र और तकनीकि पर आधारित है यहाँ फसल चक्र नियम का पालन होता है जिससे भूमि का संतुलन रहता है

वितरण : लगभग सम्पूर्ण यूरोप में मिश्रित कृषि होती है उ० अमेरिका, न्यूजीलैंड, मध्य एवं पूर्वी तटवर्ती क्षेत्र, टेक्सास आदि में इस कृषि पद्धति को अपनाया जाता है

J. वाणिज्यिक डेयरी फार्मिंग (Commercial Dairy Farming)

यह भी एक प्रकार का व्यवसायिक कृषि है यह श्रम एवं पूँजी पर आधारित कृषि है इसके दुग्ध उत्पाद के शीघ्र विनष्ट होने की समस्या रहती है इस कारण इसका तत्काल परिष्करण होता है और जल्द से जल्द बाजार पहुँचाने की व्यवस्था की जाती है

विश्व के तीन दुग्ध उत्पादक प्रदेश हैं

  • (i) शीतोष्ण दुग्ध उत्पादक प्रदेशफ्रांस, जर्मनी इत्यादि
  • (ii) शीतशीतोष्ण दुग्ध उत्पादक प्रदेशनार्वे, स्वेडन, डेनमार्क, तस्मानियाँ, न्यूजीलैंड प्रदेश दुधारू जानवरों के लिए अनुकूल प्रदेश है
  • (iii) यह विश्व के महानगरीय क्षेत्र के बाह्य क्षेत्र में है भारत की दुग्ध कृषि की सफलता का मूलाधार महानगरों में लगभग नहीं है यही स्थिति लगभग सभी विकासशील देशों की हैं

वितरण : दुग्ध कृषि बड़े देशों की अर्थव्यवस्था का आधार है जैसेन्यूजीलैंड, डेनमार्क, स्वीडन इत्यादि महत्वपूर्ण देश है विश्व के 90% दुग्ध का उत्पादन एवं उपयोग इन्हीं देशों द्वारा होता है

K. फल और सब्जी उत्पादन विशेषीकृत कृषि (Specialized Horticulture)

यह गहन वाणिज्यिक कृषि है इसका उत्पादन तीन प्रकार के क्षेत्रों में विकसित हुआ है :

  • (i) चीन प्रकार की जलवायु : फ्लोरिडा ( ट्रक फार्मिंग मंडी है) मंचूरिया का तटवर्ती क्षेत्र, न्यू साउथवेल्स का पूर्वी तटवर्ती क्षेत्र
  • (ii) भूमध्यसागरीय क्षेत्र : कैलीफोर्निया और द० यूरोप प्रदेश में फल और सब्जी की कृषि की बहुलता से होती है कैलीफोर्निया से यह ग्रेटलैक्स में चली जाती है द० यूरोप से मध्यवर्ती और उत्तरी यूरोप में फलसब्जियों को भेजा जाता है कारण इन प्रदेशों में जाड़े की ऋतु में ध्रुवीय हवाएँ तीव्रता से आती है जिसके कारण कृषि कार्य संभव नहीं हो पाता है
  • (iii) महानगरों के चारों तरफ : इस कृषि भूमि के आकार छोटेछोटे होते हैं और कृषक सालोभर फसल उत्पादन करना चाहते हैं इसलिए फल और सब्जी के प्राथमिकता दी जाती है

L. सामूहिक कृषि (Collective Farming)

सामूहिक कृषि का अर्थ ऐसे जोत (Holdings) है जिसका स्वामित्व अनेक व्यक्तियों के पास होता है, जिस पर समुदाय के सभी सदस्य मिलकर पूर्व योजना के अनुसार कार्य करते है यह प्रणाली पूर्व सोवियत संघ द्वारा 1930 ई० में विकसित की गई थी सम्प्रति रुस में तीन प्रकार की फार्म ईकाइयाँ है

(i) सहकारी फार्म (Kolkhoz) (ii) राजकीय फार्म (ii) निजी छोटे फार्म

चीन में इस प्रकार की सहकारी कृषि फार्म कोकम्यूनकहा जाता है इन फार्मो सरकार की कोई विशेष हस्तक्षेप नहीं हुआ करती साइबेरिया और उत्तरी आस्ट्रेलिया जैसे क्षेत्रों में कई फार्म 4000 हेक्टेयर तक होते हैं ऐसे इसका औसत आकार 3400 हेक्टेयर होता है ऐसे फार्मों पर निजी स्तर से गाय, सुअर, मुर्गी आदि पालन के साथसाथ फल एवं सब्जियाँ उगायी जाती है ऐसे फार्मो में 500 से भी अधिक श्रमिक कार्यरत होते हैं प्रत्येक फार्म में सामुदायिक भवन, कार्यालय, कैन्टीन, मीटिंग का कमरा, स्कूल, पुस्तकालय इत्यादि होते है

M. राज्य पोषित फार्मिंग / कृषि (State Aided Farming)

इस प्रकार की कृषि को पूर्व सोवियत संघ में सावखोज (Sovkhoz) कहा जाता था यह विस्तृत कृषि क्षेत्र होता है इसमें अत्याधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग होता है इसमें कार्यरत श्रमिकों को सभी सुविधाएँ राज्य सरकार द्वारा दी जाती है आज यह कृषि औद्योगिक अर्थव्यवस्था का रूप लेता जा रहा है वर्त्तमान समय में कृषि फार्म टूट रहे है। लेकिन इस प्रकार की कृषि से साइबेरिया के आर्थिक, सामाजिक परिस्थितियों में भी व्यापक परिवर्त्तन हुए हैं|

निष्कर्ष (Conclusion)

उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि प्रत्येक कृषि प्रकार की अपनी विशेषताएँ है और इन्हीं विशेषताओं की वजह से कृषि प्रकार को कृषि प्रादेशिकीकरण से अलग किया जाता है सभी प्रकार में पर्याप्त विविधता हैं इस संदर्भ में ह्विट्लसी का कृषि प्रकार ज्यादा प्रमाणिक लगता है आज के संदर्भ में भूगोलवेता इनके सिद्वांत को आधार रूप में प्रयुक्त कर उसमें संसोधन कर अपना मत प्रस्तुत कर रहे है

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